हमारी सनातन परंपरा में कहा जाता है कि जो स्त्री माँ बनने वाली होती है, उसे धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए और सकारात्मक वातावरण में रहना चाहिए।
हमारी सनातन परंपरा में कहा जाता है कि जो स्त्री माँ बनने वाली होती है, उसे धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए और सकारात्मक वातावरण में रहना चाहिए। उन्हें अपने उद्वेगों और षडरिपु (छह दुर्गुणों) से दूर रहना चाहिए और किसी भी प्रकार के व्यसनों से बचना चाहिए। जो बातें हमारे धर्म ग्रंथों में हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने कही हैं, वही बातें आज विश्वभर के वैज्ञानिक भी कह रहे हैं।
ज्योतिष इस विषय में एक कदम आगे बढ़कर बताता है कि किसी भी व्यक्ति—चाहे वह स्त्री हो या पुरुष—का सम्पूर्ण जीवन माँ के अनुरूप चलता है। जीवन की प्रारंभिक शिक्षा माँ और उसके आसपास के वातावरण से ही मिलती है, जो बच्चे के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करती है। माँ का कारक ग्रह चंद्र है, जो मन का भी कारक है। चंद्र की स्थिति जातक की कुंडली में जन्म के समय माँ और उस समय के वातावरण को दर्शाती है, और यह भी बताती है कि उस समय माँ को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
यह आवश्यक नहीं है कि उस समय सभी माताओं का जीवन सकारात्मक रहा हो; उन्हें जीवन की गंभीर चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है। यह स्थिति भी जातक के चंद्र की स्थिति से स्पष्ट होती है। अर्थात, माता की स्थिति, वैभव, धन आदि जो भी हो, यदि माँ ने उस समय उत्कृष्ट साहित्य, भागवत भजन, धर्म ग्रंथों के सुखद उपदेश, या अपने इष्ट देव की आराधना की है (यह आवश्यक नहीं कि धर्म ग्रंथ ही हों, बल्कि ऐसे विद्वानों की जीवनी भी हो सकती है जो जीवन को सकारात्मक बनाती हैं), तो बच्चे के जन्म समय ये सभी सुखद कार्य चंद्र पर शुभ प्रभाव डालेंगे।
यदि किसी का चंद्र पाप ग्रहों से युक्त है, लेकिन माँ के कार्य धर्म अनुरूप रहे हैं, तो चंद्र पर शुभ प्रभाव अवश्य पड़ेगा। किसी के जीवन में पिता का स्थान वैभव, दृढ़ता और सामाजिक स्तर को दर्शाता है, लेकिन माँ का प्रभाव जातक के मन और दशा के रूप में हमेशा कार्य करता है।
जलीय ग्रह जीवन में सुख की अनुभूति देते हैं और जातक की भावनाओं पर अपना प्रभाव डालते हैं; ये दो ग्रह चंद्र और शुक्र हैं। इसका मतलब यह है कि स्त्री हो या पुरुष, उनकी भावनाओं का निर्धारण चंद्र और शुक्र पर निर्भर करता है। वहीं, पुरुष ग्रह सूर्य और मंगल अग्नि तत्व जीवन में दृढ़ता और बल प्रदान करते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि पिता का स्थान भी महत्वपूर्ण है, लेकिन माँ से अधिक महत्वपूर्ण नहीं। इसलिए, हर माँ को अपने बच्चों के सुखद भविष्य के लिए बताए गए सभी सलाह का पालन करना चाहिए। यही सब पिता के लिए भी आवश्यक है। माँ से भावनाएँ प्राप्त होती हैं, लेकिन बल, रोग से लड़ने की शक्ति, और सामाजिक स्तर, जातक का वैभव पिता के कार्यों पर अधिक निर्भर करता है, क्योंकि सूर्य पिता का कारक ग्रह है।
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